ट्राली धकेलते हुए प्लेटफार्म नंबर 4 पर आ खड़े हुए आज भोरे भोर। ट्रैन आने वाली थी 7 बजे और अभी कुछ 10 मिनट बचे भी हुए थे कि हम सोचे कि थोड़ा खड़े ही रहते हैं, ठंड में सीमेंट वाली सीट में बैठना मुनासिब नही। ठंड उतनी ज़्यादा तो नही पर थी ज़रूर। अभी ही भाई छोड़के गया था टेशन बाहर।
सामने खड़ा RPF वाला धूप सेंक रहा था बंदूक ताने। हमारे पास भी हल्की धूप टच कर ही रही थी। हम दोनों शालीमार एक्सप्रेस का वेट कर रहे थे। साथ में काफी और भी पैसेंजर वेट कर रहे थे। ट्रैन आते आते और लेट होरही थी, लोग भी साथ मे विचलित।
दांत में सुबह सुबह खाया हुआ गाजर का हलवा अब भी फ्रेश था।हमरे लिए बना था तो खत्म करके ही निकलने को कहा अम्मी ने। मना कौन करता है।
लोगों के सामान और लगेज देखके छुट्टियां खत्म होने का अंदेशा साफ दिखता है। चेहरा थोडा कुछ न भी बोले भी तो लगेज बता ही देता है: वेकेशन ओवर!
सामने वाला RPF भी लोगों को ताक रहा था हमरी तरह। ड्यूटी उसकी शुरू हो चुकी थी, हमारी शुरू होने वाली है अगले दिन। ड्यूटी समान तो नही, काम मे आराम ही कह लीजिए। काम से कौन घबराता है भला। अब तो आदत जो होगयी है। हम ‘बड़े’ जो होगये हैं। कामना तो सोसाइटल नॉर्म है, सक्सेसफुल कहलाने के लिए।
ट्रैन हॉर्न देते हुए प्लेटफार्म पे घुसी चलो आरही थी और हम सोच रहे थे CTC में घर से दूर रहने का भी कॉम्पोनेन्ट होना ही चाहिए। फिर अपनी बोगी की तरफ दौड़ते हुए सोचा, ‘पैसा कबसे पूरा करेगा घर से बाहर रहके नौकरी करने का मुआफ़ज़ा?’